ब्रेनवॉश मूलनिवासी और एक तार्किक आर्य का रोचक संवाद



 डॉ. विवेक आर्य:

मूलनिवासी :- "तुम साले आर्य विदेशी हो"
आर्य :- "वो कौन सा विदेश है?"

मूलनिवासी :- "तुम युरेशिया से आए हो"
आर्य :- "युरेशिया कौन सा देश है?"

मूलनिवासी :- "युरेशिया इरान और इराक का मध्य है"
आर्य :- "युरेशिया में आर्य राजा कौनसा था?"

मूलनिवासी :- "तुम साले विदेशी हो, विदेशी... तुम्हारा डीएनए यहूदियों से मिलता है"
आर्य :- "यहूदियों का वास तो येरुश्लम और फिलिस्तीन तक रहा है, और उससे आगे इस्लाम से पहले मक्का मदीना तक... तो युरेशिया में यहूदी कैसे आए?"

मूलनिवासी :- "चुप सालों तुम पाखंडी हो ! विदेशी कहीं के।"
आर्य :- "बात क्यों घुमाते हो? बताओ न युरेशिया से आर्य आए, तो इसका मतलब आर्यो का मूल आपके डीएनए वाली बात के आधार पर तो फिलिस्तीन होता है ना?"

मूलनिवासी :- "अबे चुप साले मनुवादी! तुम विदेशी हो विदेशी। जय भीम ! "
आर्य :- "अच्छा चलो ये तो बता दो, कि क्या सभी मनुष्य एक ही मूल के हैं या अलग अलग मूल के?"

मूलनिवासी :- "एक ही मूल के हैं, लेकिन हम भारत के मूल निवासी हैं, तुम विदेशी हो।"
आर्य :- "तो तुम्हारा मतलब सभी मनुष्य किसी एक देश में उत्पन्न हुए होंगे, और समय समय पर वहाँ से पृथ्वी के अन्य भागों मे पलायन किया होगा।"

मूलनिवासी :- "जय भीम !"
आर्य :- "तो मान लो, कि वह मूल देश भारत ही था तो वहाँ से निकलकर लोग कभी युरेशिया गए, और घूम-फिर कर वापिस अपने ही भारत आए तो विदेशी कैसे हुए?"

मूलनिवासी :- "चुप साले मनुवादी! तुम विदेशी हो हम मूलनिवासी हैं।"
आर्य :- "चलो ये बता दो कि बाबासाहब का संविधान क्या कहता है?"

मूलनिवासी :- "बाबा साहब ने हमें आज़ादी दिलाई। जो विदेशी ब्राह्मणों ने हम पर अत्याचार किए थे उससे बचाया, स्त्री को पढ़ने का मौका दिया, भेदभाव समाप्त किया, मनुवाद समाप्त किया।"
आर्य :-"ठीक है, तो अब तो भारत में आज़ादी ही है, आपको आऱक्षण भी मिल रहा है. अब तो कोई समस्या नहीं है ना?"

मूलनिवासी :- "लेकिन मनुवादी ताकतें भारत को लूट रही हैं, मनुवादी सरकार हम पर अत्याचार कर रही है।"
आर्य :- "अरे! अभी तो तुमने बताया, कि बाबा के संविधान ने आज़ादी दिलाई और अत्याचार, मनुवाद समाप्त किया और अब एकदम से पलट भी गए। सही बोलो अत्याचार हो रहा है, या आज़ाद हो?"

मूलनिवासी :- "हमें हमारे अधिकार चाहिए, जय भीम! "
आर्य :- "यानी कि आपके अनुसार जो मनुवादी सरकार है, वो आपके अनुसार आप पर अत्याचार भी कर रही है, और आपको आरक्षण भी दे रही है... यही कहना चाहते हो?"

मूलनिवासी :- "सरकार में जो मनुवादी ताकते हैं, वो देश डुबो रही हैं।"
आर्य :- "लेकिन जहाँ न्याय की बात होती है, कोर्ट कचहरी में तो बाबासाहब के संविधान की धाराएँ लगती हैं, ना कि मनुस्मृति के श्लोक?"

मूलनिवासी :- "चुपकर साले ! तेरे मनुवाद ने देश को पीछे धकेल दिया है, पाखंडी साले।"
आर्य :- "पाखंड किसे कहते हैं?"

मूलनिवासी :- "तुम्हारा धर्म पाखंड है! तुम साले विदेशी ब्राह्मण देवदासी प्रथा चलाते हो, सतीप्रथा में महिलाओं को जलाते हो, जातिवाद छुआछूत करते हो, दलित महिलाओं पर अत्याचार करते हो।"
आर्य :- "देवदासी और सतिप्रथा एक समाजिक बुराई थी, जो समय के साथ आई और चली भी गई अब पिछले पचास-साठ वर्षों में कितनी देवदासीयाँ या सतियाँ होते आपने देखीं? जातिवाद और छुआछूत भी सामाजिक बुराई है, जिसको हमें मिलकर दूर करना चाहिए, न कि बैठकर अतीत को पकड़कर एक दूसरे को गालियाँ बकनी चाहिए।

मूलनिवासी :- "साले चुपकर! तुम पाखंडी हो पाखंडी। नमो बुद्धाय ! "
आर्य :- "बोलो न कुछ काल विशेष के लिये देवदासी प्रथा या सती जैसी घृणास्पद प्रथाएँ आई थीं वे समाप्त हो चुकी हैं, तुम अब तक उन्हें छाती से चिपकाकर क्यों बैठे हो?"

मूलनिवासी :- "कुछ भी कहो तुम चालबाज ब्राह्मणों... हम जानते हैं कि तुम विदेशी सबसे बड़े पाखंडी हो।"
आर्य :-"मैं तो कब से तुम से पूछ रहा हूँ कि तुम बताओ कि मैने तुम्हारे साथ कौनसा पाखंड किया? यदि समाज का कोई वर्ग पाखंड में लिप्त है, तो उसके कारण वह दूसरा वर्ग जो उसमें लिप्त नहीं है उसको क्यों दोष दे रहे हो?"

मूलनिवासी :-"तुम आरक्षण विरोधी हो, तुम्हारे अत्याचारों के कारण ही हमें बाबासाहब ने आरक्षण दिलाया है. तुम मंदिरों में पूरा आरक्षण लेते हो. हम पर अत्याचार करते हो. साले विदेशी ब्राह्मण ! "
आर्य :- "लेकिन आज की तारीख में कितने ब्राह्मण मंदिरों में बैठकर घंटा बजा रहे हैं? 99% ब्राह्मणों ने तो ये काम भी छोड़ दिया है, कोई खेती करता है, कोई शिक्षक है, कोई व्यापार करता है, कोई दुकान करता है, कोई बिज़नस करता है। तो वे 99% लोग जो अपना सामान्य दैनिक जीवन व्यतीत करते हैं, कब और कहाँ पर तुमपर अत्याचार कर रहे हैं?"

मूलनिवासी :- " नहीं तुम साले अत्याचारी हो, तुमने 3000 सालों से अत्याचार किया... विदेशीयों।"
आर्य :- "तो तुम 3000 सालों का रोना अब क्यों रो रहे हो? वर्तमान में जीने में तुम्हारा जाता क्या है? पहले जिसने जो किया, उसके लिये आज की पीढ़ी जिम्मेदार कैसे है? 99% ब्राह्मणों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है, जिन्होंने कभी जीवन में मनुस्मृति को कभी छुआ तक नहीं है? बेवजह इतनी नफरत करने से क्या प्राप्त होगा?"

मूलनिवासी :- "मनु ने शुद्रों को नीच माना, और ब्राह्मणों को सारे अधिकार देकर दलितों शुद्रों पर अत्याचार किए।"
आर्य :- "जब आर्य समाज तुम्हें कब से शोर मचाकर कह रहा है कि, तुम वैदिक मनुस्मृति की वर्णव्यवस्था और मिलावटी जातिवाद में अंतर समझ लो, तो तुम हमसे बात करने को भी पीछे हटते हो और समाधान के बजाए लगातार नफरत ही उगलते हो।"

मूलनिवासी :- "मनु के कारण ही समाज बँटा है, और जातिवाद फैला है... मनु ने ही बेड़ागर्क करके हम मनुष्यों के अंदर फूट डाली है।"
आर्य :- "जब तुम मनु जी के वर्णवाद और नई समाजिक बुराई जातिवाद में अंतर ही नहीं जानते, तो बेवजह आरोप क्यों लगाते हो? या तो तुम समझना ही नहीं चाहते, और अपनी कुंठा में जीना चाहते हो तो कुछ नहीं हो सकता।"

मूलनिवासी :- "चुपकर विदेशी! वर्णव्यवस्था और जातिवाद सब एक ही है "
आर्य :- "चुप करवाने से क्या होगा? सुनने की ताकत रखो। वर्णव्यवस्था को ऐसे समझो :- जैसे किसी स्कूल में योग्यता के अनुसार चार श्रेणियाँ होती हैं (प्रिंसिपल और स्टाफ, क्लर्क, गार्ड, पियन). तो ये योग्यता और शिक्षा के आधार पर है जिसकी जो योग्यता है वो वही पद प्राप्त करता है. यदि PHD या और कोई ऊँची शिक्षा से युक्त है वो प्रिंसिपल या टीचर, बलशाली है तो बंदूकधारी गार्ड जो कि स्कूल की देखरेख करे, अकाऊँट पढ़ा है तो क्लर्क और दसवीं पास है तो चपरासी या पियन आदि। ये सारे पद शिक्षा योग्यता के आधार पर है, यही तो मनु की वर्णव्यवस्था का स्वरूप है जिसमें अत्यंत शिक्षित मनुष्य ब्राह्मण, युद्ध सीखने वाला क्षत्रिय, व्यापार वाला वैश्य और कम बुद्धि वाला शुद्र कहा गया है. तुम किसी भी संस्था में चले जाओ, ये चार ही तुमको मिलेंगे. तुम इनसे अलग नहीं हो सकते. इसी को वर्णव्यवस्था कहते हैं।"

मूलनिवासी :- "और जातिवाद क्या होता है बे? "
आर्य :- "जातिवाद को ऐसे समझो कि मान लो प्रिंसिपल का बेटा, जिसने उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की और दसवीं पास करते ही उसका पिता उसे प्रिंसिपल बना दे तो सोचो स्कूल कैसे चलेगा? पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसे ही चलता रहे तो स्कूल डूब जायेगा और बंद होने की कगार पर होगा. यही तो जातिवाद है, कि कुछ स्वार्थी ब्राह्मणों ने कालविशेष में अपने अयोग्य पुत्र पुत्रियों को ब्राह्मण ब्राह्मणी घोषित करके पूरे जातिवादि कुचक्र को जन्म दे दिया. यानी कि ब्राह्मण का बेटा ब्राह्मण, क्षत्रिय का बेटा क्षत्रिय, वैश्य का बेटा वैश्य, शुद्र का बेटा शुद्र इसी श्रृंखला ने योग्यता का सत्यानाश करके निकृष्ट लोगों के हाथ में सामाजिक ढांचा दे दिया, जिससे कि वर्णव्यवस्था बिगड़कर जातिवाद में बदल गई. वर्णव्यवस्था में वर्ण परिवर्तन की छूट होती है लेकिन जातिवाद में नहीं. इसी से मनुष्य समाज का बँटाधार हुआ, इसमे मनु कदापि दोषी नहीं हैं।"

मूलनिवासी :- "ये वर्ण परिवर्तन क्या है बे?"
आर्य :- "मान लो उसी स्कूल का चपरासी विद्या प्राप्त करने लग जाता है, और पढ़ाई करते करते वो PHD तक पूरी कर लेता है... तो वह उसी स्कूल में प्रिंसिपल बनने का पूरा अधिकारी हो जाता है. ठीक ऐसे ही एक मनुष्य वर्ण परिवर्तन करके, दूसरे वर्ण को प्राप्त करता था ये सबसे उत्तम व्यवस्था मनु महाराज ने अपने स्मृति शास्त्र में कही है. लेकिन जब से कुछ आराजक तत्वों ने वर्ण परिवर्तन को समाप्त कर दिया, तो उससे प्रतिभाओं का हनन होने लगा. इसमें मनुजी का कोई दोष नहीं है, दोष तो उन स्वार्थीयों का है।"

मूलनिवासी :- "मनु कैसे दोषी नहीं है, पाखंडी ?"
आर्य :- "बाबासाहेब अम्बेडकर के सँविधान में सौ से अधिक संशोधन हो चुके हैं. जैसे उन संशोधनों के लिये आंबेडकर दोषी नहीं है, तो मनुस्मृति में हुए प्रक्षेपों के लिए मनु दोषी कैसे हो सकते हैं?"

मूलनिवासी :- तुम साले आर्य विदेशी हो...
(इति सिद्धम : - यानी घूमफिरकर वहीं के वहीं... प्रश्नोत्तरी की सबसे पहली लाईन फिर से पढ़ें..)
ऐसे होते हैं चर्च पोषित "पूरी तरह से मानसिक कन्फ्यूज्ड तथाकथित मूलनिवासी"...

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